मोटिवेशन आज नही आज से 5200 यानी पांच हजार दोसौ साल पहले भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध के मैदान में जब अर्जुन अपने सभी नाती रिस्तेदारो को सामने के पक्ष में देख कर उदास और बेचैन मन से अपने हथियार रख देता हैं। अर्जुन जब भगवान कृष्ण को अपनो से युद्ध करने से मना कर देता हैं तब श्री कृष्ण अर्जुन के मनोबल और आत्मविश्वास को बल देने के लिए व आंतरिक उथल पुथल को शांत करने व युद्ध को लड़ने के लिए तैयार करने के लिए जो शब्द कहे वही गीता सार है यानी उस समय आज का मोटिवेशन शब्द सही बैठता हैं।
महाभारत के सबसे अहम सार को ही गीता कहा गया हैं। गीता ही संसार को तारने और संसार से कर्म करते हुए पार जाने का सार हैं।
गीता का एक एक शब्द यदि हम पढ़े तो शायद यह पाएंगे कि संसार मे जो कुछ हो रहा हैं एक नाटक है एक स्वांग है एक मंचन है। जो श्री कृष्ण के द्वारा रचित लिखित और मंचित हैं।
जिसका जिता जागता उदहारण है जब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को अपना मुँह खोल कर बताते हैं और कहते है कि देखो अर्जुन मेरे अंदर देखो कितने ही युगों के युद्ध तो मेरे अंदर है कितने ही युग आये और गए मैं आज भी अटल हूँ। हे अर्जुन तू आज जिसको रिस्तेदार समझ रहा है वो पिछले जन्म में तेरा क्या संबंध रहा होगा। जो आज तेरे सामने गुरु दादा चाचा भाई भतीजे या अन्य रिस्ते नाते खड़े है वो पिछले जन्म में तेरा किया लिया और तु ने उनका क्या लिया इसी लेनदेन के कर्म को ही जीवन मरण कहते हैं।
जन्म मरण जीवन का सबसे सच और अटल सच्च हैं। इसको मैं भी नही बदल सकता।
हर युग की रचना उस नए बही खाते की तरह है जिसके पन्नो के भर जाने के बाद नई बही। जिसमे पहले पिछले लेनदेन का लेखा जोखा और बाद में नया लेखा जोखा लिखा जाता हैं।
ठीक आज तुम जहाँ हो,जैसे हो,जिसके साथ हो,जिसके विपरीत हो,जिसके लिए हो,क्यो हो,किस प्रकार हो यही तो जन्म का सार हैं। जिस लेनदेन को पूरा करना उस के लिए संसार बनता और मिटता हैं और मुझे इस सृष्टि को संभालने की ड्यूटी भोले नाथ ने दी है। भोले नाथ भी मैं ही हूँ। मैं ही ब्रह्मा और मैं ही महेश हूँ मैं ही नारायण और मैं ही क्रष्ण हूँ। मैं ही सूरज,मैं ही चंन्द्र ग्रह और तारे हूँ। मैं ही हवा और मैं ही जल हूँ। मैं ही माता मैं ही पिता हूँ मैं इस सृष्टि का सार हूँ। मैं ही इस सृष्टि का कण कण से लेकर योजनों पार का अंत हूँ।
मैं ही जन्म दाता और मैं ही मौत का कारण हूँ।
हे अर्जुन तुझे कर्म तो करना पड़ेगा। जो बोया जिसने उसको तो काटना पड़ेगा। जिसको बोया उसको काटना भी तो पड़ेगा।
खाया किसी का अन्न का कण उसको लौटना पड़ेगा। जो दिया है वो लेना पड़ेगा। जो पाया वो लौटना पड़ेगा। जन्मों जन्म तक का हिसाब हर युग मे चुकाना पड़ेगा।
तेरे युद्ध नही लड़ने का तो सवाल ही पैदा ही नही होता। युद्ध तो तुझे करना पड़ेगा। क्योंकि कर्म और लेनदेन से यह सृष्टि बंधी है। सृष्टि के नियम मैंने तेरे जन्मों से कितने युगों पहले तय कर दिए थे।
हे अर्जुन तू क्या सोचता है कि युद्ध तू कर रहा है या मैं युद्ध नही करूँगा। तू है क्या। कौन है तू। क्यो इस जन्म में आया हैं। क्यो तुझे हस्तिनापुर में जन्म मिला। क्या तेरा और गुरु द्रोण और पितामाह भीष्म का या माता कुंती या द्रोपदी या धर्मराज कौन है कितने युगों से साथ चल रहे है कितने जन्मों तक विपरीत रहे।
कितने जन्मों का अच्छे और बुरे कर्मो का फल धो रहा है तू इस युद्ध मे। कितने युगों के पाप से मुक्त हो रहा है तू। कितने बंधनो से मुक्त हो रहा हैं।
याद रखना की इस युद्ध को जीतने या हारने के बाद भी इस युद्ध मे बचने वाला भी अमर नही रहेगा।
क्यो तेरे चेहरे का तेज गायब है क्यो तेरे मन मे संताप है। क्या तू लाया था क्या तू ले लेजायेगा। तुझे क्या लगता हैं कि तू तय करेगा कि तुझे क्या करना है क्या तू अपनी मर्जी से इस संसार मे चलेगा।
तो तेरी यह सबसे बड़ी भूल है। क्योंकि इस संसार मे हमे हमारे पिछले कर्म चला रहे हैं। हर चाल का कारण पिछली चाल है। हर आज के कर्म का कारण पिछले कर्म से है। हर युग के जन्म का कारण पिछले जन्मों के कारण हैं।
इस सृष्टि का कोई कारण है। तू और मैं कौन है सामने खड़ी अपनो और परायो की फौज कौन है कितने जन्मों के मित्र और दुश्मन है। मित्रो के भेष में दुश्मन और दुश्मन के भेष में मित्र यही तो संसार का सार हैं।
इस युग मे तुम्हारी माता है पिछले जन्म में कौन थी। द्रोपदी से लेकर तुम्हारी पत्नी बच्चे और नाती पोते या संसार का हर रिश्ता पिछले कर्मो के हिसाब के लिए जुड़ा हैं।
अब पिछले जन्म में क्या नाटक और क्या चरित्र मिला। पिछले जन्म में क्या पाप और पुण्य कर्म किये उसी के मुताबिक रिस्ते और नाते और मित्र मिलते हैं।
श्री हरि कृष्ण ने कहा,हे अर्जुन अब शायद तुम्हारे मन से संसय हट गया हो चित शांत हो गया हो विचार परिपक्व हो गए हो,मुझ पर विश्वास हो गया हो तो अब न तेरा कोई है न तेरा कोई था। यह तो एक नाटक है जिसको जैसा चरित्र निर्देशक व लेखक ने लिखा तय किया वो कर्म करना पड़ेगा।
तभी तो हर युग मे मैं आता हूँ हर युग मे मैं अलग रूप और कर्म में आता हूँ।
एक युग मे मैंने भी युद्ध किया था। वनवास भोगा था। पत्नी के साथ राज मिलने वाला था लेकिन वनवास भोगा था। सरयू पास ही थी पार कर पिता के संस्कार में जा सकता था लेकिन लिखा नही था। ब्राह्मण को तीर मार था। एक वंश पूरा काटा था। दोस्त के लिए छुप कर युद्ध किया था। हरि(हनुमान) से हरी ने साथ लिया था
पिता से पहले पुत्रो को मारा था। एक भाई को साथ लेकर भेद से दूसरे भाई को मारा था।
और आज तुझसे भी कर्म करवा रहा हूँ। तुझे तेरा चरित्र संसार रूपी मंच पर निभाना है और ये कर्म तुझे निभाना पड़ेगा नही तो सृष्टि का नियम खण्डित होगा जो मैं मंजूर नही करूँगा। क्योकि मुझे सृष्टि कई युगों तक नियमो और कायदों के साथ साथ कर्मो के फलों के लिए चलानी हैं।
अब उठ अर्जुन ले अस्त्र हाथ मे। और अर्जुन ने उठ कर पितामह और गुरु द्रोण पर तीर तान दिए।
श्री हरि रथ की लगाम थाम शांत हंसी से रथ को युद्ध के मैदान की तरफ मोड़ते हुए। शंख और घन्टो की आवाज के बीच युद्ध की दुम्बदुभि बज रही थी।
यही गीता का सार हैं। संसार का जन्म कर्मो का बंधन भोगने के लिए हुए हैं न कि अपने मन मुताबिक जीने के लिए।
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