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Showing posts from June, 2022

पैसा बड़ा या समय

  पैसा बड़ा या समय अगर जिस दिन इस विषय को समझ लोगे समझो सबकुछ समझ गए लेकिन इसको समझते समझते समझते जिंदगी बीत जाती हैं लेकिन हम पैसो को बड़ा मानने में लगे रहते हैं।  अगर पैसा बड़ा होता तो अस्पताल जाने वाले कि जब मौत होती हैं। तो लोग कहते हैं कि पूरी जिंदगी खाने और पीने पर ध्यान नही दिया और आखिर इस पैसे से जीवन नही बचा। जबकि अगर शांति से जीवन जीते हुए दो रुपये कम काम लेता तो क्या फर्क पड़ता। लेकिन अब क्या हो जब समय बीत गया। समय रहते अगर चेत जाता तो शायद स्वस्थ्य ठीक रहता। समय रहते अगर इलाज लेता  तो शायद बच जाता। समय के अनुसार खान पान पर ध्यान दिया होता तो शायद बीमारी नही लगती। समय के साथ यदि आराम को तव्वजो देता तो शायद आज अस्पताल आने की या जाने की नोबत नही आती। ऊपर लिखी इन लाइन में पैसा और समय ज्यादा किसका जिक्र हुआ वो बड़ा। इसका निर्णय मैं नही आप स्वयं कर दोगे।  पैसो से आप खाना खरीद सकते हैं लेकिन अगर आप एक बार भर पेट खाना खा चुके हैं तो अब यही कहोगे। की चल बता क्या खायेगा अभी लेकर आता हूँ। तब एक ही उतर मिलेगा की नही अब रहने दे भूख नही हैं।  जब इंसान की उम्र बीत जाती है और बालों में सफेदी छा

मोटिवेशन और गीता

 मोटिवेशन आज नही आज से 5200 यानी पांच हजार दोसौ साल पहले भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध के मैदान में जब अर्जुन अपने सभी नाती रिस्तेदारो को सामने के पक्ष में देख कर उदास और बेचैन मन से अपने हथियार रख देता हैं। अर्जुन जब भगवान कृष्ण को अपनो से युद्ध करने से मना कर देता हैं तब श्री कृष्ण अर्जुन के मनोबल और आत्मविश्वास को बल देने के लिए व आंतरिक उथल पुथल को शांत करने व युद्ध को लड़ने के लिए तैयार करने के लिए जो शब्द कहे वही गीता सार है यानी उस समय आज का मोटिवेशन शब्द सही बैठता हैं। महाभारत के सबसे अहम सार को ही गीता कहा गया हैं। गीता ही संसार को तारने और संसार से कर्म करते हुए पार जाने का सार हैं। गीता का एक एक शब्द यदि हम पढ़े तो शायद यह पाएंगे कि संसार मे जो कुछ हो रहा हैं एक नाटक है एक स्वांग है एक मंचन है। जो श्री कृष्ण के द्वारा रचित लिखित और मंचित हैं। जिसका जिता जागता उदहारण है जब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को अपना मुँह खोल कर बताते हैं और कहते है कि देखो अर्जुन मेरे अंदर देखो कितने ही युगों के युद्ध तो मेरे अंदर है कितने ही युग आये और गए मैं आज भी अटल हूँ। हे अर्जुन तू आज जिसको रिस्तेदार समझ

बाप और बेटी

  बाप और बेटी *बेटी की विदाई के वक्त बाप ही सबसे आखिरी में रोता है क्यों, चलिए आज आपको विस्तार से बताता हूं..........* *बाकी सब भावुकता में रोते हैं, पर बाप उस बेटी के बचपन से विदाई तक के बीते हुए पलों को याद कर करके रोता है।* *माँ बेटी के रिश्तों पर तो बात होती ही है, पर बाप ओर बेटी का रिश्ता भी समुद्र से गहरा है।* *हर बाप घर के बेटे को गाली देता है, धमकाता है, मारता है, पर वही बाप अपनी बेटी की हर गलती को नकली दादागिरी दिखाते हुए, नजर अंदाज कर देता है।* *बेटे ने कुछ मांगा तो एक बार डांट देता है, पर अगर बिटिया ने धीरे से भी कुछ मांगा तो बाप को सुनाई दे जाता है, और जेब में रूपया हो या न हो पर बेटी की इच्छा पूरी कर देता है।* *दुनिया उस बाप का सब कुछ लूट ले तो भी वो हार नही मानता, पर अपनी बेटी के आंख के आंसू देख कर खुद अंदर से बिखर जाए उसे बाप कहते हैं।* *और बेटी भी जब घर में रहती है, तो उसे हर बात में बाप का घमंड होता है। किसी ने कुछ कहा नहीं कि वो बेटी तपाक से बोलती है, "पापा को आने दे फिर बताती हूं"* *बेटी घर में रहती तो माँ के आंचल में है, पर बेटी की हिम्मत उसका बाप रहता है।

मन,इच्छा और भोग

  आज की पोस्ट का विषय हैं मन पर नियन्त्रण। यानी जीवन का सबसे अहम विषय हैं। "मन" यानी हमारे शरीर का वो आयाम जिसके कारण दुनिया और जहन से लेकर जहांन तक इससे अछूता नही हैं।  जीवन मे मन ही वो आयाम हैं जिसके कारण इंसान पाप से पुण्य के बीच बहता हैं। मन ही वो कड़ी है जो संसार को गति और मति दे रहा हैं। किसी महापुरुष ने कहा हैं कि दुनिया का सबसे तेज अगर कोई आयाम है तो वो मन हैं।  मन एक पल में करोड़ो किलोमीटर की यात्रा करके दूसरे पल वापस लौट आता हैं। किसी कवि ने कहा हैं कि  मन के मते न चलिए,मन पल पल है और ,कभी चंचल, कभी मन राजा, कभी मन फ़क़ीर, एक पल में लाख चले,न चले कमजोर, मन सोचे तो बने राजा,मन सोचे तो चोर, मन के सोचे जो चले तो समझो उसका मन ही बने पक्ष कमज़ोर। जीवन मे मन एक धोखा हैं,जीवन मे मन एक बुलबुला, जीवन मे मन जंजाल हैं। मन ही है सब दुखो की खान। मन तो सदा बावरा,उड़ता फिरे अटारी, मन जिसके काबू रहे वही जीते नगरी सारी। मन का जो गुलाम हैं,मन उसको ले डूबे, मन तो छपन भोग खाये दोपहरी में सपने दिखाये। मन बिना कर्म के फल चाहे,मन तो बिन पढ़े अंक चाहे। मन तो सोते हुए व व्यायाम चाहे। मन तो बिन युद

My Motivation Videos

 

मोटिवेशन मंत्र

  जिस प्रकार देव मंत्र होते हैं। जिनके जप करने से और ध्यान करने से देवताओं का संपर्क और वातावरण में एक सकारत्मक पक्ष जागरूक होता हैं। जीव हो या मानव या वृक्ष सदैव ज्ञान और उत्तम सहयोग और विचारो और कर्मो के आदान प्रदान से कड़ी दर कड़ी विकास होते रहता हैं। जीवन का सार है कि बच्चा है या आदमी या युवा जैसा ज्ञान वैसा विकास। जिस प्रकार शरीर की मांस पेशियों को खुराक की जरूरत हैं जिससे मांस पेशियों का विकास बेहतर हो सके और शरीर किसी भी आंतरिक और बाहरी मेहनत के लिए मजबूत बनकर रह सकें ठीक वैसे ही मस्तिष्क को सकारत्मक मोटिवेशन अर्थात सकारत्मक विचारो का सहयोग और साथ समय समय पर चाहिए। जिससे कि युवाओ से के बुजुर्गो और अन्य सभी को अपने जीवन के मार्ग में किसी भी बुरे और नकरात्मक समय मे मस्तिष्क को बेहतर विचारो की खुराक मिल सके। अक्सर गांव देहात हो या मंदिर मस्जिद हो या अन्य धार्मिक और सामाजिक स्थल हो सभी जगह भजन सन्त वाणी गुरु वाणी प्रवचन से लेकर लेक्चर और अन्य ना ना प्रकार से इंसान के दिल और दिमाग अर्थात जीवन के दुखों के अनुभवों को अपने मस्तिष्क और मन से निकाल कर बल और बुद्धि का प्रवाह मस्तिष्क की हर क

खान पान और खून।

  आज की पोस्ट का विषय हैं खान पान यानी जो हम आहार शरीर और जीवन को चलाने के लिए लेते हैं। उसका हमारे जीवन मे क्या प्रभाव पड़ता हैं।  हमारे शरीर के साथ साथ हमारे शरीर मे रहने वाली आत्मा किस प्रकार की हैं। देव आत्मा हैं या दानव। हमारा जन्म का वर्ण और वर्ग कैसा हैं। इसका भी हमे ध्यान में रखकर खान पान को सर्वोपरि तव्वजो देनी चाहिए।  आज के समय मे लोग नॉन वेज अर्थात मांसाहार को तव्वजो ज्यादा दे रहे हैं। जबकि पहले शाकाहार का आहार ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता था।  जीवन मे आहार से ही शरीर मे खून बनाता हैं। केवल शरीर मे खून और मांस का होना और हाथों में तलवार और भाले और तीर होने से ही कुछ हासिल नही होगा जबतक हमारे कुल का देव यदि हमारे खानपान से प्रसन्न नही हैं। मैं हो या आप अक्सर अपने आसपास के खान पान को लेकर अक्सर बड़े बुजुर्ग चर्चाये करते है। कि हमे नॉन वेज नही खाना चाहिए या हुके वेज ही खाना चाहिए।  लेकिन कभी आपने सोचा हैं कि ऐसा क्यों।  तो इसका उत्तर आपको खान पान और आहार से शरीर मे बहने वाले खून से मिलता हैं। हमारे शरीर मे कैसा और किस किस्म का खून बहता हैं वही हमारे कुल,जीवन और भूत और भविष्य का आधार

पाप और पुण्य कर्म क्या हैं।

  पाप क्या हैं पुण्य क्या हैं।  मानलो दुनिया एक रेस्टूरेंट हैं। जहाँ खाना पहले बनाना पड़ता हैं सर्व करने के लिए। बाद में मिलता हैं खाने के लिए। पाप क्रेडिट कार्ड हैं जहाँ पहले उधार पर रेस्टूरेंट से जितना मर्जी हैं खा लो। जितना मर्जी है खरीद लो। लेकिन बाद में अदा यानी बिल तो चुकाना पड़ता हैं। अब यदि पास में पैसे नही हैं तो सामने वाले के मुताबिक कोई भी कार्य किया जाना तय हैं। क्योंकि बिल तो अदा करना ही हैं।  ठीक वैसे ही पुण्य उस डेबिट कार्ड की तरह हैं जिसमे किसी भी सेवा से पहले धन चुका दिया जाता हैं। यानी रेस्टूरेंट में पहले ऑर्डर्स का पेमेंट किया और फिर आराम से घर बैठे खाया।  जीवन में जो भी हैं कर्ज और अदा करने का तरीका हैं भले बिल हो या कर्म।  इसी प्रकार ऐसे कर्म जिनके अनुसार सिर्फ बेहतर कार्यो को व मानवकल्याण के कार्यो को अंजाम दिया जाता है। ठीक वैसे ही जैसे संसार के रीति और नीति के लिए आवश्यक है। जब संसार मे उत्तम कर्म किये जाते हैं तो लौट कर आपके पास कई गुना आते हैं। जिसको पुण्य कहते हैं। आपके अच्छे कर्मों के कारण आपके सांसारिक कार्यो में रिस्ते नातो का व यार दोस्तो का साथ मिलता है। ल

मुश्किल दौर ही हमारा विकास का समय

 मुझे नहीं पता कि मेरी लाईफ़ की स्टोरी क्या होगी लेकिन उसमें ये कभी नहीं लिखा होगा - “मैंने हार मान ली”। - मैं अपने जीवन मे लगातार संघर्ष करते हुए जीवन के लक्ष्यों और आयामो को तय करने में लगा हुआ रहूंगा। चाहे उसके लिए कितना ही बुरा दौर आ जाए। मुश्किल दौर ही हमारा  विकास का दौर हैं। विकास भले अंदरूनी हो या बाहरी। अक्सर बुरे दौर का फायदा यह हैं कि डिस्टर्ब करने वाले रिस्तेदार, दोस्त और चाहने वालो की टेंशन खत्म। यानी हमारा शून्य काल यानी जिसका मतलब जहाँ सबकुछ छूट जाता हैं।  जिसमे केवल आप और आपकी तकलीफे बुरे दौर की अनगिनत समस्याए। अब आपको शांति से बैठ कर एक नई और अनुभव के संग्रह की यात्रा को शुरू करना।  पहले आपके पास जीवन का अनुभव नही था लेकिन अब आपके पास जीवन की अनगिनत ठोकरों का अनुभव हैं। कमजोर मन और कमजोर दिल को मजबूत बनाने का समय हैं। अनगिनत थपेड़ो से उबरने का समय हैं।  क्योकि अक्सर उत्तम रास्तो और इरादों वाले लोगो को ही संसार मे सबसे ज्यादा तकलीफ और ठोकरे मिलती हैं। उत्तम लक्ष्यों से भटकाने की पुर जोर कोशिश तो विपक्ष करेगा ही। याद रखो जब तक आपका मजबूत विपक्ष नही हैं। समझो आप कुछ नही हो

गुस्सा यानी क्रोध

आज की पोस्ट जिस विषय पर हैं वो विषय हैं गुस्सा। यानी क्रोध। क्रोध जोकि शरीर को वो अवस्था जिसमे इंसान कुछ समय के लिए जो क्षणिक भी हो सकता हैं और घन्टो और दिनों की अवधि भी हो सकता हैं। जोकि समय की कोई माप सिमा नही हैं।  क्रोध जोकि इंसान के पतन का कारण हैं यह मैं और आप सदियो से पढ़ते आ रहे हैं। जोकि शायद सच्च भी हैं बड़े बड़े विद्वानों और मनीषियों ने कहा हैं।  क्रोध जोकी ताप और आग का एक प्रकार हैं जोकी अदृश्य और कब और किस विषय पर आ सकता हैं पता नही। जीवन मे सदैव ध्यान रखे कि जीवन मे शांति के साथ दुनिया जुड़ना चाहती हैं। लेकिन अशांति के साथ कोई नही जुड़ना चाहता।  दूसरा शांति पानी हैं। गुस्सा पानी हैं। जीवन मे सदा पानी जैसे रहो जैसा बर्तन वैसा आकार। पानी मे शितलता हैं लेकिन आग जोकि गर्म तापमान को इंगित करती हैं। अब जीवन मे किसी व्यक्ति को क्रोध क्यो है। क्या कारण रहा होगा कि व्यक्ति के अंदर क्रोध कूट कूट कर भरा हैं।  यदि क्रोध अपने स्वार्थ और अहम या घमंड के कारण हैं तो समझो आपका पतन निश्चित हैं। भले आप कितने ही गुनी और धनी क्यो न हो।  यदि आप अमीर से अमीर है लेकिन यदि आपने क्रोध का रास्ता अख्तिया

फ़िल्म - कुलदेव

 यह मेरी रजिस्टर्ड कहानी हैं। जिसका नाम कुलदेव हैं। कुलदेव यानी किसी भी कुल का देव या देवी। जोकि कुल पर आने वाले सम्पूर्ण दुखो और तकलीफ को अपने वंश और परिवार पर आने से कुलदेव बचाता हैं।  मैं राठौड़ कुल का राजपूत वंश से हूँ। वैसे धरती पर सम्पूर्ण वंश एक ही जड़ की शाखाये हैं। जोकि फलते फूलते आज बहुत बड़े वट वृक्ष का रूप ले चूल हैं उतने बड़े सदियो से चले आ रहे वट वृक्ष की अंसख्य शाखाओ को कैसे पहचाने तो उसकी व्यवस्था हैं नाम,कुल,कर्म क्षेत्र,स्थान,राज्य,जिले,देश और काल।  कुलदेव भी उसी मुताबिक 36 जातियों और वंशो का एक ही होता हैं। हर वंश का अलग अलग कुलदेव हैं। जिसमे अलग अलग काल और समय के अनुरूप अवतरित की वेला हैं। मैं कुलदेव नाम से ही कहानी इस लिए लिख रहा हूँ कि सभी वंश और कुल अपनी अपनी देवी देव को तव्वजो दे और सदैव इस बात का मनन रहे की बिना कुल देव के जीवन मे कुछ भी सम्भव नही होगा। यदि कुलदेव आपसे प्रसन्न नही हैं तो समझो आपके कदम कदम पर मुश्किलों के अंबार लगेंगे।  यदि आप कुलदेव को अपने जीवन का आधार मानेंगे तो आपके कर्म कदम पर खुशियों के भंडार खुल जाएंगे। कुलदेव ही जीवन की वो चाबी हैं जो कि सदि

कर्म का आनंद कल मिले।

  दोस्तो आज की पोस्ट का विषय हैं। कि आज कर्म ऐसे करो जिसका आनन्द व फल कल बजी उत्तम मिले। क्या शराब और गंजे का नशा या ऐसे कर्म जो अय्यासी से लिप्त है। क्या आपको लगता हैं कि ऐसे कर्मो का फल कल उत्तम मिलेगा। जबकि यदि उत्तम कर्म किये गए तो समझो उनका फल आने वाले भविष्य में उत्तम मिलने वाला ही हैं।  शायद यही दो आयाम हैं जोकी इंसान को बहुत जल्दी यदि भटकाव के समय यह पता चल जाये तो समझो इंसान अपना जीवन  भटकाव से बचा सकता हैं। भटकाव की उम्र नही होती जबकि इंसानियत को उम्र तो मरने के बाद भी पीढ़ियों को उसका उत्तम फल प्रदान करती हैं। धरती पर जन्म लेने वाले प्रत्येक इंसान को सिर्फ जानवरो को छोड़ कर सभी कर्मो के फल अपनी आने वाली 7 पीढ़ियों तक फल पहुचने वाले करने चाहिए।  यानी आप सात पीढ़ी तक तो नही रहोगे लेकिन आपके कर्म सात पीढियो तक रहेंगे जोकि अच्छे कर्मों का फल अच्छा और बुरे कर्मो का फल बुरा।  समय रहते आज से ही अपने कर्मो का फल सुधारे। मजबूत और कामजोर में क्या फर्क हैं।  मजबूत किसी भी कर्म या हत्या शौक और मौज मस्ती के लिए नही करता। जीवन मे कोई ऐसा समय आ जाता हैं जहाँ कही कठोर क़दम उठाने पड़ते हैं तो उसकी

लक्ष्य और अकेले चलना।

  जीवन मे सदा यदि नॉर्मल जीवन  हैं तो भीड़ और परिवार समाज आपके साथ रहेगा। क्योकी विशेष काम को विशेष लोग ही समझ सकते हैं। विशेष लोग यदि आपके परिवार या समाज मे नही हैं या फिर आपके परिवार या समाज मे आपके विचार और लक्ष्य की समझ नही होगी तो फिर समझो आपको अपने लक्ष्य के लिए अकेला चलना पड़ेगा।  क्योकि विशेष लक्ष्य या तो तय मत करो या फिर लक्ष्य को पाने के लिए अकेले चलो। क्योकि आपको कोई हक्क नही किसी को बुरा बोलने का क्योकि जीवन मे सदा याद रखो यदि आप संसार की चली आ रही परंपरओं को लेकर जीते है तो आपके साथ दुनिया होगी और परिवार या समाज क्योकि दुनिया या समाज सदा सही होता हैं लेकिन जैसी आपके आसपास रहने वाले लोगो की सोच और समझ होगी। यदि आपके आसपास रहने वाले समाज की सोच सिर्फ पवत पालन और पुरानी सामाजिक आवश्यकताओ को पूरा करने की सोच हैं तो आप यह तय कर लो कि आपके नये विचार और लक्ष्य को लोग समझ नही पाएंगे।  लोग साथ तभी देते हैं जब उनको आपके विचार और कार्यो की समझ होगी। जीवन मे सदा याद रखो की जैसी समझ वैसी सोच। भगवत भक्ति और लक्ष्य उसी को तय करने पड़ते हैं। जिन्होंने लक्ष्य तय किये हैं। जितना बड़ा लक्ष्य उतन

संसार के आयाम का औसत तय।

  दोस्तो आजकी पोस्ट हैं। क्या अत्यधिक प्यार बिगड़ने की निशानी हैं। अर्थात पायदान है। जीवन मे सदैव यह सच हजारो सालो से चला आ रहा हैं। माँ, दादी चाची नानी बुआ या बहिन,मौसी और अन्य महिला चरित्रों से हमारा समाज सुशोभित हैं। यानी यह वर्णित महिला चरित्र के अपने अलग मायने हैं। इनके बिना घर सुना और खाली होता हैं। ऊपर वर्णित जितने भी नाम हैं वो भारतीय संस्कृति व विश्व स्तर पर पर पूजनीय माननीय व सन्मानिय रिस्ते हैं। इन रिस्तो के बिना एक व्यक्ति या परिवार रह ही नही सकता।   किसी भी घर या समाज की धुरी इन रिस्तो से ही सम्भव हो सकता हैं। इन रिस्तो में ही प्यार बस्ता हैं। जब जब किसी व्यक्ति को इन रिस्तो के पास जाना होता हैं। तब तब व्यक्ति के रोम रोम में एक अजीब सी ख़ुसी दौड़ती हैं। यानी रिस्तो में सिवाय प्यार के कुछ नही मिलता।  वही पिता,बड़ा या छोटा भाई दादा,चाचा नाना फूफा मौसा से लेकर अन्य रिस्ते स्वभाव से कठोर और नियम पसन्द होते हैं। कही कही इन रिस्तो में कोमलता और प्यार होता हैं।  लेकिन मुख्यता नर रिस्तो में कठोरता अत्यधिक होती हैं। इन रिस्तो के नियमो और संसार के कठोर सिधान्तो का पुट होता हैं।  यानी प्

लोगो की सोच उनकी राय परिस्थितियों के अनुसार बदल जाती हैं

 समुद्र के किनारे जब एक तेज़ लहर आयी तो एक बच्चे का चप्पल ही अपने साथ बहा ले गयी..  बच्चा रेत पर अंगुली से लिखता है... "समुद्र चोर है" उसी समुद्र के दूसरे किनारे पर एक मछुवारा बहुत सारी मछलियाँ पकड़ लेता है.... वह उसी रेत पर लिखता है..."समुद्र मेरा पालनहार है" एक युवक समुद्र में डूब कर मर जाता है.... उसकी मां रेत पर लिखती है... "समुद्र हत्यारा है" एक दूसरे किनारे एक गरीब बूढ़ा टेढ़ी कमर लिए रेत पर टहल रहा था...उसे एक बड़े सीप में एक अनमोल मोती मिल गया,  वह रेत पर लिखता है... "समुद्र बहुत दानी है" ....अचानक एक बड़ी लहर आती है और सारे लिखा मिटा कर चली जाती है । मतलब समंदर को कहीं कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोगों की उसके बारे में क्या राय हैं ,वो हमेशा अपनी लहरों के संग मस्त रहता है..  अगर विशाल समुद्र बनना है तो जीवन में क़भी भी फ़िजूल की बातों पर ध्यान ना दें....अपने उफान , उत्साह , शौर्य ,पराक्रम और शांति समुंदर की भाँती अपने हिसाब से तय करें । लोगों का क्या है .... उनकी राय परिस्थितियों के हिसाब से बदलती रहती है । अगर मक्खी चाय में गिरे तो चाय फेंक देत

आज का फल कल।

  जीवन का सार हैं आज का फल कल। यदि आपके परिवार में कोई किसी ने आपके जन्म से पहले आम लगा  दिया था तब आप उम्र के जल्दी पड़ाव पर आम कहा सकते हैं। बेटो को पिता से शिकायत नही होनी चाहिए। क्योंकि दादा का किया बेटो को मिलता हैं। यानी एक बात पक्की हैं कि आज यदि कोई कर्म करोगे तो उसका फल आने वाले भविष्य में मिलेगा। किसी भी विशेष कार्य का फल कभी हाथों हाथ नही मिलता। अच्छे और लजीज भोजन का फल काफी समय के धैर्य व मेहनत के बाद मिलता हैं। जबकि साधारण दैनिक और रोज बनने वाला खाना तो हम रोज खाते हैं। जिसमे ज्यादा कोई मेहनत नही पड़ती। लेकिन जब ज्यादा मेहनत नही होगी तो समझो उसका परिणाम भी साधारण होगा। यदि आप किसी विशेष कर्म को कर रहे हो तो आम लोगो को आपके विशेष कर्म की रूपरेखा थोड़े ही पता हैं। न ही आम आदमी का दिमाग आपके कच्चे योजना चित्र को आम आदमी समझ नही पायेगा। अतः इसीलिए आम आदमी आपकी योजना और समय से आगे की सोच को समझ नही पायेगा। जीवन मे सदा बड़े कर्म का परिणाम देर से मिलता हैं। जीवन मे यदि कोई विशेष कर्म करने का विचार हैं तो सबसे पहले यह सोचना जरूरी हैं कि आपको दुनिया के ताने और दुनिया के तिरिस्कार पूर्ण

चारो तरफ अंधेरा

  जीवन मे हर उस व्यक्ति के जीवन में अंधेरा आया है और आता हैं। जीवन का नाम ही संघर्ष है जीवन सरल और साधारण नही होता। जैसा हम चाहते हैं वैसा भी नही होता। जीवन उबड़ खाबड़ सड़क की तरह हैं।       क्या आपने केअभी हार्ट का चेकअप करवाया हैं। या ईसीजी करवाई होगी। इनमें सदैव लाइन ऊपर निचे अर्थात ऊपर नीचे की तरफ बहती हैं। ऊपर नीचे बहने से ही डॉक्टर के  चेहरे पर शांति के भाव रहते हैं। साथ ही डाक्टर सन्तुष्ट रहते हैं। जिस मरीज की हार्ट लाइन सीधी बहने लगती हैं। समझो उसकी जिंदगी का सफर खत्म होने वाला हैं।     जीवन का सार हैं कि जो व्यक्ति यह कहता हैं कि मेरा जीवन तो मजे में हैं पिछले 30 सालों से मजे की जिंदगी जी रहा हूँ तो समझो उसने कोई रिस्क ली ही नही। न ही उसने अपनी सामर्थ्य से बाहर जाकर कोई कार्य क़िया। अर्थात वो व्यक्ति सेफ जोन यानी अपने एरिया या पुश्तेनी कार्यो पर ही जीवन चला रहा हैं। यानी उसने अलग से नया और आने वाले भविषय को लेकर कोई कार्य किया ही नही।    जिसने कभी नया जीवन नया दौर और नया कार्य या नया शोध या नया कोई विशेष उद्देश्य से सुरक्षित क्षेत्र वसे बाहर ही नही निकला तो फिर वो कमजोर और अंदर से

संगत का असर

  दोस्तो संगत का असर इतनी पुरानी कहावत हैं कि शायद जब आप और मेरा जन्म ही नही हुआ। जन्म से पहले से चली आ रही इस पुरानी कहावत को मैंने मेरे माता पिताजी से सेकड़ो बार सुना। कभी अगर कही गलती हो जाती तो यह कहावत तो मानो दरवाजे और जीभ पर तैयार खड़ी मिलती थी। अब शायद आप मुझे या पूछेंगे की इस कहावत का क्या सार हैं कुछ को तो पता हैं। जेसी संगत वैसा फल। आज नही तो निश्चय कल। जीवन मे संगत को असर वास्तव में पड़ता हैं या खाली कहावत ही हैं। जीवन मे संगत से क्या बदल सकता हैं। क्या संगत में इतनी ताकत होती हैं। कि इंसान की आदत को बदल दे।  क्या इसका मतलब दोस्तों और ऐसे लोगो से दूर रहना चाहिए जिनकी संगत खराब हैं जिनको शराब,जुआ,या और भी कई उल्टी सीधी आदते हैं जो शायद न लग जाये। तो दोस्तो ऊपर कही गयी बाते सोलह आना सच है। संगत ही एक ऐसा माध्यम हैं जिसमे इतनी ताकत हैं कि इंसान के विचारो से लेकर तमाम आदतों को बदल देती हैं। अक्सर यह देखने मे आया हैं कि अच्छे लोगो की संगत में लोग कम जाते हैं। अच्छे लोगो के पास भीड़ कम होती है। अच्छे लोग सही और वास्विक और तय नियमो व नीतियों के साथ बिना किसी नशे और बिना किसी ऐब के अपन

मुस्किलो से सामना

  दोस्तो, आज की पोस्ट जिस विषय पर आधारित हैं वो विषय हैं "मुस्किलो से सामना". यानी अगर जीवन मे आगे बढ़ना हैं तरक्की करनी हैं या विशेष नाम और दाम दोनों के साथ रुतबा बढ़ाना है तो आपको मुस्किलो से सामना करना होगा। शहीदों का सन्मान उनके हौसलों और जान तक पे खेलने से मिलता हैं। किसी भी कार्य मे मुश्किल हालात ही एक मजबूत इंसान का निर्माण करती हैं। आज जो ट्रेंड चल रहा हैं वो भोग और विलासिता का समय चल रहा हैं। जबकी पहले के समय मे जितने भी महापुरुष और विशेष लोगो ने इन धरती पर नाम किया उनके नाम होने के मुख्य कारण था मुश्किलों से खेलना।  राम और कृष्ण ने स्वयं कष्ट का जीवन ही चुना क्यो। राणा प्रताप हो या पाबूजी राठौड़ हो या दुर्गा दास राठौड़ हो या पन्ना धाय हो या राणा सांगा या अमर सिंह हो या अन्य। इतिहास को उठा कर देखलो जिन्होंने जितनी तकलीफ और मुश्किलों से सामना किया उनका आज भी इतिहास में नाम दुनिया जानती हैं। जितना हम भोग की तरफ जायेंगे उतना ही हम अपने कर्मो को गिराते चले जायेंगे। आज दुनिया सिर्फ इसलिए हर प्रकार से धन कमाना चाहती हैं ताकि जीवन मे मौज मस्ती ओर भोग के विषयों को मजबूत किया जा

ऊंचाई के रास्तो पर निचेल रास्तो से ज्यादा समय लगता है।

  दोस्तो, क्या कभी आपने सोचा है कि छोटे या बड़े या विशेष या साधारण शब्दो के पीछे छुपे मुख्य सार क्या हैं। क्या कभी आपने यह सोचने और समझने की कोशिश की हैं कि किसी भी व्यक्ति या वस्तु की मांग और कीमत क्विलटी पर क्यो निर्भर हैं क्विलटी क्या हैं। कीमत क्विलिटी पर निर्भर क्यो है। क्विलटी स्वयं क्या हैं। ऐसा क्या हैं कि क्विलटी किसी भी व्यक्ति,वस्तु या किसी भी कार्य मे विशेष शब्द जोड़ देती हैं।  ऐसा क्या हैं कि क्विलटी को कई पायदानों में बांटा गया हैं। ऐसा क्या हैं कि व्यक्ति से लेकर वस्तु या किसी भी प्रकार के विचार से लेकर संसार मे सबकुछ क्विलटी पर डिपेंड हैं।  ऐसा क्या हैं जो किसी व्यक्ति,वस्तु या विचार या कर्म को अलग अलग कीमत में परिभाषित करता हैं। क्या कभी आपने सोचा हैं कि डिस्कवरी चैनल के सभी कार्यक्रम महंगे क्यो हैं। क्यो बड़े आदमी की वैल्यू ज्यादा होती हैं। क्या सफलता से तय होता है। निर्माण से लेकर अन्य पहलुओं पर अगर नजर डाले तो हम एक विचार ले नजदीक पहुचेंगे की सबसे ज्यादा समय जिस वस्तु,व्यक्ति या विचार को बनने और बनाने में लगता हैं जिसमे कई अन्य मिश्रणों की तव्वजो होती है। उसका मार्केट