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मोटिवेशन मंत्र

  जिस प्रकार देव मंत्र होते हैं। जिनके जप करने से और ध्यान करने से देवताओं का संपर्क और वातावरण में एक सकारत्मक पक्ष जागरूक होता हैं। जीव हो या मानव या वृक्ष सदैव ज्ञान और उत्तम सहयोग और विचारो और कर्मो के आदान प्रदान से कड़ी दर कड़ी विकास होते रहता हैं। जीवन का सार है कि बच्चा है या आदमी या युवा जैसा ज्ञान वैसा विकास। जिस प्रकार शरीर की मांस पेशियों को खुराक की जरूरत हैं जिससे मांस पेशियों का विकास बेहतर हो सके और शरीर किसी भी आंतरिक और बाहरी मेहनत के लिए मजबूत बनकर रह सकें ठीक वैसे ही मस्तिष्क को सकारत्मक मोटिवेशन अर्थात सकारत्मक विचारो का सहयोग और साथ समय समय पर चाहिए। जिससे कि युवाओ से के बुजुर्गो और अन्य सभी को अपने जीवन के मार्ग में किसी भी बुरे और नकरात्मक समय मे मस्तिष्क को बेहतर विचारो की खुराक मिल सके। अक्सर गांव देहात हो या मंदिर मस्जिद हो या अन्य धार्मिक और सामाजिक स्थल हो सभी जगह भजन सन्त वाणी गुरु वाणी प्रवचन से लेकर लेक्चर और अन्य ना ना प्रकार से इंसान के दिल और दिमाग अर्थात जीवन के दुखों के अनुभवों को अपने मस्तिष्क और मन से निकाल कर बल और बुद्धि का प्रवाह मस्तिष्क की हर क

खान पान और खून।

  आज की पोस्ट का विषय हैं खान पान यानी जो हम आहार शरीर और जीवन को चलाने के लिए लेते हैं। उसका हमारे जीवन मे क्या प्रभाव पड़ता हैं।  हमारे शरीर के साथ साथ हमारे शरीर मे रहने वाली आत्मा किस प्रकार की हैं। देव आत्मा हैं या दानव। हमारा जन्म का वर्ण और वर्ग कैसा हैं। इसका भी हमे ध्यान में रखकर खान पान को सर्वोपरि तव्वजो देनी चाहिए।  आज के समय मे लोग नॉन वेज अर्थात मांसाहार को तव्वजो ज्यादा दे रहे हैं। जबकि पहले शाकाहार का आहार ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता था।  जीवन मे आहार से ही शरीर मे खून बनाता हैं। केवल शरीर मे खून और मांस का होना और हाथों में तलवार और भाले और तीर होने से ही कुछ हासिल नही होगा जबतक हमारे कुल का देव यदि हमारे खानपान से प्रसन्न नही हैं। मैं हो या आप अक्सर अपने आसपास के खान पान को लेकर अक्सर बड़े बुजुर्ग चर्चाये करते है। कि हमे नॉन वेज नही खाना चाहिए या हुके वेज ही खाना चाहिए।  लेकिन कभी आपने सोचा हैं कि ऐसा क्यों।  तो इसका उत्तर आपको खान पान और आहार से शरीर मे बहने वाले खून से मिलता हैं। हमारे शरीर मे कैसा और किस किस्म का खून बहता हैं वही हमारे कुल,जीवन और भूत और भविष्य का आधार

पाप और पुण्य कर्म क्या हैं।

  पाप क्या हैं पुण्य क्या हैं।  मानलो दुनिया एक रेस्टूरेंट हैं। जहाँ खाना पहले बनाना पड़ता हैं सर्व करने के लिए। बाद में मिलता हैं खाने के लिए। पाप क्रेडिट कार्ड हैं जहाँ पहले उधार पर रेस्टूरेंट से जितना मर्जी हैं खा लो। जितना मर्जी है खरीद लो। लेकिन बाद में अदा यानी बिल तो चुकाना पड़ता हैं। अब यदि पास में पैसे नही हैं तो सामने वाले के मुताबिक कोई भी कार्य किया जाना तय हैं। क्योंकि बिल तो अदा करना ही हैं।  ठीक वैसे ही पुण्य उस डेबिट कार्ड की तरह हैं जिसमे किसी भी सेवा से पहले धन चुका दिया जाता हैं। यानी रेस्टूरेंट में पहले ऑर्डर्स का पेमेंट किया और फिर आराम से घर बैठे खाया।  जीवन में जो भी हैं कर्ज और अदा करने का तरीका हैं भले बिल हो या कर्म।  इसी प्रकार ऐसे कर्म जिनके अनुसार सिर्फ बेहतर कार्यो को व मानवकल्याण के कार्यो को अंजाम दिया जाता है। ठीक वैसे ही जैसे संसार के रीति और नीति के लिए आवश्यक है। जब संसार मे उत्तम कर्म किये जाते हैं तो लौट कर आपके पास कई गुना आते हैं। जिसको पुण्य कहते हैं। आपके अच्छे कर्मों के कारण आपके सांसारिक कार्यो में रिस्ते नातो का व यार दोस्तो का साथ मिलता है। ल

मुश्किल दौर ही हमारा विकास का समय

 मुझे नहीं पता कि मेरी लाईफ़ की स्टोरी क्या होगी लेकिन उसमें ये कभी नहीं लिखा होगा - “मैंने हार मान ली”। - मैं अपने जीवन मे लगातार संघर्ष करते हुए जीवन के लक्ष्यों और आयामो को तय करने में लगा हुआ रहूंगा। चाहे उसके लिए कितना ही बुरा दौर आ जाए। मुश्किल दौर ही हमारा  विकास का दौर हैं। विकास भले अंदरूनी हो या बाहरी। अक्सर बुरे दौर का फायदा यह हैं कि डिस्टर्ब करने वाले रिस्तेदार, दोस्त और चाहने वालो की टेंशन खत्म। यानी हमारा शून्य काल यानी जिसका मतलब जहाँ सबकुछ छूट जाता हैं।  जिसमे केवल आप और आपकी तकलीफे बुरे दौर की अनगिनत समस्याए। अब आपको शांति से बैठ कर एक नई और अनुभव के संग्रह की यात्रा को शुरू करना।  पहले आपके पास जीवन का अनुभव नही था लेकिन अब आपके पास जीवन की अनगिनत ठोकरों का अनुभव हैं। कमजोर मन और कमजोर दिल को मजबूत बनाने का समय हैं। अनगिनत थपेड़ो से उबरने का समय हैं।  क्योकि अक्सर उत्तम रास्तो और इरादों वाले लोगो को ही संसार मे सबसे ज्यादा तकलीफ और ठोकरे मिलती हैं। उत्तम लक्ष्यों से भटकाने की पुर जोर कोशिश तो विपक्ष करेगा ही। याद रखो जब तक आपका मजबूत विपक्ष नही हैं। समझो आप कुछ नही हो

गुस्सा यानी क्रोध

आज की पोस्ट जिस विषय पर हैं वो विषय हैं गुस्सा। यानी क्रोध। क्रोध जोकि शरीर को वो अवस्था जिसमे इंसान कुछ समय के लिए जो क्षणिक भी हो सकता हैं और घन्टो और दिनों की अवधि भी हो सकता हैं। जोकि समय की कोई माप सिमा नही हैं।  क्रोध जोकि इंसान के पतन का कारण हैं यह मैं और आप सदियो से पढ़ते आ रहे हैं। जोकि शायद सच्च भी हैं बड़े बड़े विद्वानों और मनीषियों ने कहा हैं।  क्रोध जोकी ताप और आग का एक प्रकार हैं जोकी अदृश्य और कब और किस विषय पर आ सकता हैं पता नही। जीवन मे सदैव ध्यान रखे कि जीवन मे शांति के साथ दुनिया जुड़ना चाहती हैं। लेकिन अशांति के साथ कोई नही जुड़ना चाहता।  दूसरा शांति पानी हैं। गुस्सा पानी हैं। जीवन मे सदा पानी जैसे रहो जैसा बर्तन वैसा आकार। पानी मे शितलता हैं लेकिन आग जोकि गर्म तापमान को इंगित करती हैं। अब जीवन मे किसी व्यक्ति को क्रोध क्यो है। क्या कारण रहा होगा कि व्यक्ति के अंदर क्रोध कूट कूट कर भरा हैं।  यदि क्रोध अपने स्वार्थ और अहम या घमंड के कारण हैं तो समझो आपका पतन निश्चित हैं। भले आप कितने ही गुनी और धनी क्यो न हो।  यदि आप अमीर से अमीर है लेकिन यदि आपने क्रोध का रास्ता अख्तिया

फ़िल्म - कुलदेव

 यह मेरी रजिस्टर्ड कहानी हैं। जिसका नाम कुलदेव हैं। कुलदेव यानी किसी भी कुल का देव या देवी। जोकि कुल पर आने वाले सम्पूर्ण दुखो और तकलीफ को अपने वंश और परिवार पर आने से कुलदेव बचाता हैं।  मैं राठौड़ कुल का राजपूत वंश से हूँ। वैसे धरती पर सम्पूर्ण वंश एक ही जड़ की शाखाये हैं। जोकि फलते फूलते आज बहुत बड़े वट वृक्ष का रूप ले चूल हैं उतने बड़े सदियो से चले आ रहे वट वृक्ष की अंसख्य शाखाओ को कैसे पहचाने तो उसकी व्यवस्था हैं नाम,कुल,कर्म क्षेत्र,स्थान,राज्य,जिले,देश और काल।  कुलदेव भी उसी मुताबिक 36 जातियों और वंशो का एक ही होता हैं। हर वंश का अलग अलग कुलदेव हैं। जिसमे अलग अलग काल और समय के अनुरूप अवतरित की वेला हैं। मैं कुलदेव नाम से ही कहानी इस लिए लिख रहा हूँ कि सभी वंश और कुल अपनी अपनी देवी देव को तव्वजो दे और सदैव इस बात का मनन रहे की बिना कुल देव के जीवन मे कुछ भी सम्भव नही होगा। यदि कुलदेव आपसे प्रसन्न नही हैं तो समझो आपके कदम कदम पर मुश्किलों के अंबार लगेंगे।  यदि आप कुलदेव को अपने जीवन का आधार मानेंगे तो आपके कर्म कदम पर खुशियों के भंडार खुल जाएंगे। कुलदेव ही जीवन की वो चाबी हैं जो कि सदि

कर्म का आनंद कल मिले।

  दोस्तो आज की पोस्ट का विषय हैं। कि आज कर्म ऐसे करो जिसका आनन्द व फल कल बजी उत्तम मिले। क्या शराब और गंजे का नशा या ऐसे कर्म जो अय्यासी से लिप्त है। क्या आपको लगता हैं कि ऐसे कर्मो का फल कल उत्तम मिलेगा। जबकि यदि उत्तम कर्म किये गए तो समझो उनका फल आने वाले भविष्य में उत्तम मिलने वाला ही हैं।  शायद यही दो आयाम हैं जोकी इंसान को बहुत जल्दी यदि भटकाव के समय यह पता चल जाये तो समझो इंसान अपना जीवन  भटकाव से बचा सकता हैं। भटकाव की उम्र नही होती जबकि इंसानियत को उम्र तो मरने के बाद भी पीढ़ियों को उसका उत्तम फल प्रदान करती हैं। धरती पर जन्म लेने वाले प्रत्येक इंसान को सिर्फ जानवरो को छोड़ कर सभी कर्मो के फल अपनी आने वाली 7 पीढ़ियों तक फल पहुचने वाले करने चाहिए।  यानी आप सात पीढ़ी तक तो नही रहोगे लेकिन आपके कर्म सात पीढियो तक रहेंगे जोकि अच्छे कर्मों का फल अच्छा और बुरे कर्मो का फल बुरा।  समय रहते आज से ही अपने कर्मो का फल सुधारे। मजबूत और कामजोर में क्या फर्क हैं।  मजबूत किसी भी कर्म या हत्या शौक और मौज मस्ती के लिए नही करता। जीवन मे कोई ऐसा समय आ जाता हैं जहाँ कही कठोर क़दम उठाने पड़ते हैं तो उसकी