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लक्ष्य और अकेले चलना।

  जीवन मे सदा यदि नॉर्मल जीवन  हैं तो भीड़ और परिवार समाज आपके साथ रहेगा। क्योकी विशेष काम को विशेष लोग ही समझ सकते हैं। विशेष लोग यदि आपके परिवार या समाज मे नही हैं या फिर आपके परिवार या समाज मे आपके विचार और लक्ष्य की समझ नही होगी तो फिर समझो आपको अपने लक्ष्य के लिए अकेला चलना पड़ेगा।  क्योकि विशेष लक्ष्य या तो तय मत करो या फिर लक्ष्य को पाने के लिए अकेले चलो। क्योकि आपको कोई हक्क नही किसी को बुरा बोलने का क्योकि जीवन मे सदा याद रखो यदि आप संसार की चली आ रही परंपरओं को लेकर जीते है तो आपके साथ दुनिया होगी और परिवार या समाज क्योकि दुनिया या समाज सदा सही होता हैं लेकिन जैसी आपके आसपास रहने वाले लोगो की सोच और समझ होगी। यदि आपके आसपास रहने वाले समाज की सोच सिर्फ पवत पालन और पुरानी सामाजिक आवश्यकताओ को पूरा करने की सोच हैं तो आप यह तय कर लो कि आपके नये विचार और लक्ष्य को लोग समझ नही पाएंगे।  लोग साथ तभी देते हैं जब उनको आपके विचार और कार्यो की समझ होगी। जीवन मे सदा याद रखो की जैसी समझ वैसी सोच। भगवत भक्ति और लक्ष्य उसी को तय करने पड़ते हैं। जिन्होंने लक्ष्य तय किये हैं। जितना बड़ा लक्ष्य उतन

संसार के आयाम का औसत तय।

  दोस्तो आजकी पोस्ट हैं। क्या अत्यधिक प्यार बिगड़ने की निशानी हैं। अर्थात पायदान है। जीवन मे सदैव यह सच हजारो सालो से चला आ रहा हैं। माँ, दादी चाची नानी बुआ या बहिन,मौसी और अन्य महिला चरित्रों से हमारा समाज सुशोभित हैं। यानी यह वर्णित महिला चरित्र के अपने अलग मायने हैं। इनके बिना घर सुना और खाली होता हैं। ऊपर वर्णित जितने भी नाम हैं वो भारतीय संस्कृति व विश्व स्तर पर पर पूजनीय माननीय व सन्मानिय रिस्ते हैं। इन रिस्तो के बिना एक व्यक्ति या परिवार रह ही नही सकता।   किसी भी घर या समाज की धुरी इन रिस्तो से ही सम्भव हो सकता हैं। इन रिस्तो में ही प्यार बस्ता हैं। जब जब किसी व्यक्ति को इन रिस्तो के पास जाना होता हैं। तब तब व्यक्ति के रोम रोम में एक अजीब सी ख़ुसी दौड़ती हैं। यानी रिस्तो में सिवाय प्यार के कुछ नही मिलता।  वही पिता,बड़ा या छोटा भाई दादा,चाचा नाना फूफा मौसा से लेकर अन्य रिस्ते स्वभाव से कठोर और नियम पसन्द होते हैं। कही कही इन रिस्तो में कोमलता और प्यार होता हैं।  लेकिन मुख्यता नर रिस्तो में कठोरता अत्यधिक होती हैं। इन रिस्तो के नियमो और संसार के कठोर सिधान्तो का पुट होता हैं।  यानी प्

लोगो की सोच उनकी राय परिस्थितियों के अनुसार बदल जाती हैं

 समुद्र के किनारे जब एक तेज़ लहर आयी तो एक बच्चे का चप्पल ही अपने साथ बहा ले गयी..  बच्चा रेत पर अंगुली से लिखता है... "समुद्र चोर है" उसी समुद्र के दूसरे किनारे पर एक मछुवारा बहुत सारी मछलियाँ पकड़ लेता है.... वह उसी रेत पर लिखता है..."समुद्र मेरा पालनहार है" एक युवक समुद्र में डूब कर मर जाता है.... उसकी मां रेत पर लिखती है... "समुद्र हत्यारा है" एक दूसरे किनारे एक गरीब बूढ़ा टेढ़ी कमर लिए रेत पर टहल रहा था...उसे एक बड़े सीप में एक अनमोल मोती मिल गया,  वह रेत पर लिखता है... "समुद्र बहुत दानी है" ....अचानक एक बड़ी लहर आती है और सारे लिखा मिटा कर चली जाती है । मतलब समंदर को कहीं कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोगों की उसके बारे में क्या राय हैं ,वो हमेशा अपनी लहरों के संग मस्त रहता है..  अगर विशाल समुद्र बनना है तो जीवन में क़भी भी फ़िजूल की बातों पर ध्यान ना दें....अपने उफान , उत्साह , शौर्य ,पराक्रम और शांति समुंदर की भाँती अपने हिसाब से तय करें । लोगों का क्या है .... उनकी राय परिस्थितियों के हिसाब से बदलती रहती है । अगर मक्खी चाय में गिरे तो चाय फेंक देत

आज का फल कल।

  जीवन का सार हैं आज का फल कल। यदि आपके परिवार में कोई किसी ने आपके जन्म से पहले आम लगा  दिया था तब आप उम्र के जल्दी पड़ाव पर आम कहा सकते हैं। बेटो को पिता से शिकायत नही होनी चाहिए। क्योंकि दादा का किया बेटो को मिलता हैं। यानी एक बात पक्की हैं कि आज यदि कोई कर्म करोगे तो उसका फल आने वाले भविष्य में मिलेगा। किसी भी विशेष कार्य का फल कभी हाथों हाथ नही मिलता। अच्छे और लजीज भोजन का फल काफी समय के धैर्य व मेहनत के बाद मिलता हैं। जबकि साधारण दैनिक और रोज बनने वाला खाना तो हम रोज खाते हैं। जिसमे ज्यादा कोई मेहनत नही पड़ती। लेकिन जब ज्यादा मेहनत नही होगी तो समझो उसका परिणाम भी साधारण होगा। यदि आप किसी विशेष कर्म को कर रहे हो तो आम लोगो को आपके विशेष कर्म की रूपरेखा थोड़े ही पता हैं। न ही आम आदमी का दिमाग आपके कच्चे योजना चित्र को आम आदमी समझ नही पायेगा। अतः इसीलिए आम आदमी आपकी योजना और समय से आगे की सोच को समझ नही पायेगा। जीवन मे सदा बड़े कर्म का परिणाम देर से मिलता हैं। जीवन मे यदि कोई विशेष कर्म करने का विचार हैं तो सबसे पहले यह सोचना जरूरी हैं कि आपको दुनिया के ताने और दुनिया के तिरिस्कार पूर्ण

चारो तरफ अंधेरा

  जीवन मे हर उस व्यक्ति के जीवन में अंधेरा आया है और आता हैं। जीवन का नाम ही संघर्ष है जीवन सरल और साधारण नही होता। जैसा हम चाहते हैं वैसा भी नही होता। जीवन उबड़ खाबड़ सड़क की तरह हैं।       क्या आपने केअभी हार्ट का चेकअप करवाया हैं। या ईसीजी करवाई होगी। इनमें सदैव लाइन ऊपर निचे अर्थात ऊपर नीचे की तरफ बहती हैं। ऊपर नीचे बहने से ही डॉक्टर के  चेहरे पर शांति के भाव रहते हैं। साथ ही डाक्टर सन्तुष्ट रहते हैं। जिस मरीज की हार्ट लाइन सीधी बहने लगती हैं। समझो उसकी जिंदगी का सफर खत्म होने वाला हैं।     जीवन का सार हैं कि जो व्यक्ति यह कहता हैं कि मेरा जीवन तो मजे में हैं पिछले 30 सालों से मजे की जिंदगी जी रहा हूँ तो समझो उसने कोई रिस्क ली ही नही। न ही उसने अपनी सामर्थ्य से बाहर जाकर कोई कार्य क़िया। अर्थात वो व्यक्ति सेफ जोन यानी अपने एरिया या पुश्तेनी कार्यो पर ही जीवन चला रहा हैं। यानी उसने अलग से नया और आने वाले भविषय को लेकर कोई कार्य किया ही नही।    जिसने कभी नया जीवन नया दौर और नया कार्य या नया शोध या नया कोई विशेष उद्देश्य से सुरक्षित क्षेत्र वसे बाहर ही नही निकला तो फिर वो कमजोर और अंदर से

संगत का असर

  दोस्तो संगत का असर इतनी पुरानी कहावत हैं कि शायद जब आप और मेरा जन्म ही नही हुआ। जन्म से पहले से चली आ रही इस पुरानी कहावत को मैंने मेरे माता पिताजी से सेकड़ो बार सुना। कभी अगर कही गलती हो जाती तो यह कहावत तो मानो दरवाजे और जीभ पर तैयार खड़ी मिलती थी। अब शायद आप मुझे या पूछेंगे की इस कहावत का क्या सार हैं कुछ को तो पता हैं। जेसी संगत वैसा फल। आज नही तो निश्चय कल। जीवन मे संगत को असर वास्तव में पड़ता हैं या खाली कहावत ही हैं। जीवन मे संगत से क्या बदल सकता हैं। क्या संगत में इतनी ताकत होती हैं। कि इंसान की आदत को बदल दे।  क्या इसका मतलब दोस्तों और ऐसे लोगो से दूर रहना चाहिए जिनकी संगत खराब हैं जिनको शराब,जुआ,या और भी कई उल्टी सीधी आदते हैं जो शायद न लग जाये। तो दोस्तो ऊपर कही गयी बाते सोलह आना सच है। संगत ही एक ऐसा माध्यम हैं जिसमे इतनी ताकत हैं कि इंसान के विचारो से लेकर तमाम आदतों को बदल देती हैं। अक्सर यह देखने मे आया हैं कि अच्छे लोगो की संगत में लोग कम जाते हैं। अच्छे लोगो के पास भीड़ कम होती है। अच्छे लोग सही और वास्विक और तय नियमो व नीतियों के साथ बिना किसी नशे और बिना किसी ऐब के अपन

मुस्किलो से सामना

  दोस्तो, आज की पोस्ट जिस विषय पर आधारित हैं वो विषय हैं "मुस्किलो से सामना". यानी अगर जीवन मे आगे बढ़ना हैं तरक्की करनी हैं या विशेष नाम और दाम दोनों के साथ रुतबा बढ़ाना है तो आपको मुस्किलो से सामना करना होगा। शहीदों का सन्मान उनके हौसलों और जान तक पे खेलने से मिलता हैं। किसी भी कार्य मे मुश्किल हालात ही एक मजबूत इंसान का निर्माण करती हैं। आज जो ट्रेंड चल रहा हैं वो भोग और विलासिता का समय चल रहा हैं। जबकी पहले के समय मे जितने भी महापुरुष और विशेष लोगो ने इन धरती पर नाम किया उनके नाम होने के मुख्य कारण था मुश्किलों से खेलना।  राम और कृष्ण ने स्वयं कष्ट का जीवन ही चुना क्यो। राणा प्रताप हो या पाबूजी राठौड़ हो या दुर्गा दास राठौड़ हो या पन्ना धाय हो या राणा सांगा या अमर सिंह हो या अन्य। इतिहास को उठा कर देखलो जिन्होंने जितनी तकलीफ और मुश्किलों से सामना किया उनका आज भी इतिहास में नाम दुनिया जानती हैं। जितना हम भोग की तरफ जायेंगे उतना ही हम अपने कर्मो को गिराते चले जायेंगे। आज दुनिया सिर्फ इसलिए हर प्रकार से धन कमाना चाहती हैं ताकि जीवन मे मौज मस्ती ओर भोग के विषयों को मजबूत किया जा